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B.A. FIRST YEAR ( HISTORY ) IGNOU- BHIC 131 भारत का इतिहास (प्रारंभ से 300 ई. तक)- Chapter- 11th बौद्ध एव जैन धर्म एवं अन्य धार्मिक विचार


परिचय

छठी शताब्दी ईसा पूर्व में उत्तर भारत में परंपरा विरोधी दो प्रमुख पंथ 

प्रकाश में आए बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म 

जीवन के कई क्षेत्रों में यह परिवर्तन का युग था 

वैदिक ब्राह्मण वाद सर्वाधिक वर्चस्व में था 

इसीलिए क्षत्रिय और वैश्य जातियों ने ब्राह्मणों के सर्वोच्च हैसियत के 

दावे का प्रतिरोध किया क्योंकि वह भी सामाजिक सोपान में ऊपर चढ़ना चाहते थे


गौतम बुध और बौद्ध धर्म की उत्पत्ति

बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा गौतम बुद्ध थे 

इनका जन्म 563 ईसा पूर्व लुंबिनी (नेपाल )में हुआ 

इनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था 

इनके पिता शुद्धोधन शाक्यो के राजा थे माता महामाया देवी का निधन जल्दी हो जाने 

के कारण इनका लालन-पालन प्रजापति गौतमी ने किया 

पत्नी यशोधरा तथा पुत्र का नाम राहुल था

इन्होंने 29 साल की उम्र में ग्रह त्यागा बोधगया (बिहार ) में इन्हें 

एक वटवृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई 

इसके बाद बुद्ध अजीवन धर्म का प्रचार किया 

अपने धर्म के प्रचार के लिए उन्होंने सारनाथ, मथुरा, राजगीर, 

गया और पाटलिपुत्र का भ्रमण किया


गौतम बुद्ध के उपदेश 

1] बौद्ध धर्म का मूल आधार चार अटल सत्य है 

2] दु:ख, 

3] दु:ख समुदाय, 

4] दु:ख निरोध, 

तथा दुख निवारक निरोध (दुख निवारक मार्ग) अर्थात अष्टांग मार्ग


  • सम्यक दृष्टि सत्य और असत्य तथा सदाचार और दुराचार के विवेक द्वारा 
  • सत्य की सही परख
  • सम्यक संकल्पा अथवा इच्छा पता हिंसा से रहित संकल्प करना 
  • सम्यक वाणी जिसका तात्पर्य है सदा सत्य तथा  कोमलवाणी का प्रयोग करना 
  • सम्यक कर्म या अच्छे कर्म करना 
  • सम्यक अजीव अर्थात् सदाचार का पालन करना
  • सम्यक व्यायाम
  • सम्यक् स्मृति अर्थात अपने कर्मों के प्रति विवेक तथा 
  • सावधानी को निरंतर याद रखना
  • सम्यक समाधि एकाग्रता स्थापित करना
  • सम्यक अजीव अर्थात् सदाचार का पालन करना
  • सम्यक व्यायाम
  • सम्यक् स्मृति अर्थात अपने कर्मों के प्रति विवेक तथा सावधानी को निरंतर याद रखना
  • सम्यक समाधि एकाग्रता स्थापित करना


महात्मा बुद्ध ने लोगों को सदाचार पर चलने के लिए कुछ 

  • व्रतो का पालन करने के लिए कहा जैसे 
  • सत्य बोलना 
  • चोरी ना करना 
  • ब्रह्मचर्य का पालन करना 
  • लोभ  का त्याग 
  • अहिंसा का पालन, 
  • सुगंधित वस्तुओं का निषेध 
  • नृत्य गान का त्याग, 
  • कामिनी कंचन का त्याग, 
  • और असमय भोजन ना करना


बौद्ध धर्म का विकास

बुध का जीवन एक आदर्श जीवन था प्रेम और दया से उन्होंने जनता का हृदय जीता 

बौद्ध धर्म तर्क पर आधारित था और इससे उसका विकास हुआ 

गौतम ने धार्मिक रीति रिवाज अन्य विश्वासों को खंडित किया 

समय अनुकूल था क्योंकि ब्राह्मण धर्म में बहुत से बुराइयां आ गई थी 

गौतम की शिक्षा सरल एव साधारण भाषा(पालि) में थी 

और साधारण लोगों की समझ में आ जाती थी

बौद्ध धर्म को राज्य सहायता भी प्राप्त हुई 

बौद्ध धर्म समानता के आधार पर आधारित था 

बौद्ध धर्म लोकमत की ओर ध्यान देता था स्त्रियों को संघ में प्रवेश करने की आज्ञा थी 

बौद्ध धर्म पशुबलि के विरुद्ध और अहिंसा के सिद्धांत को मानता था

बौद्ध ग्रंथों मगध के शासक बिंबिसार, अजातशत्रु ,कोसल नरेश 

प्रसेनजीत आदि राजाओं को बुध का अनुयायी बताया गया 

मौर्य सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म का महानतम अनुयायीऔर पहला 

संरक्षण माना जाता है अशोक ने अपने पूरे साम्राज्य में शिलाओ और 

स्तंभों पर धम्म (बौद्ध धर्म) के नैतिक उपदेश लिखवाए


जैन धर्म की उत्पत्ति

ऋषभदेव जैन धर्म के संस्थापक थे जैन धर्म की उत्पत्ति एवं विकास के लिए 

24 तीर्थंकर उत्तरदाई थे अंतिम 2 तीर्थंकर पार्श्वनाथ और महावीर की ऐतिहासिकता 

को बौद्ध ग्रंथों ने प्रमाणित किया 

पार्श्वनाथ 23वे तीर्थकर 30 वर्ष की आयु में उन्होंने संन्यास लिया 

83 दिन तक घोर तप करके परम ज्ञान  (कैवल्य) प्राप्त हुआ 

इनके 1,64000 पुरुष तथा 3,27000 स्त्रियां अनुयायी थी 

पार्श्वनाथ में चार महा व्रतों का प्रतिपादन किया अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह,अस्तेय

जैन धर्म के 24वें एवं अंतिम तीर्थकर महावीर थे इनका जन्म 540 ईसा पूर्व वैशाली के 

निकट कुंडा ग्राम में हुआ इनके पिता सिद्धार्थ क्षत्रिय संघ के प्रधान थे 

माता का नाम त्रिशाला तथा इनका विवाह यशोदा के साथ हुआ 

इनकी एक पुत्री थी जिसका नाम प्रियदर्शना था 30 वर्ष में इन्होंने गृहत्याग किया 

और 12 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद ऋजुमलिका नदी के पास 

साल वृक्ष के नीचे इन्हें ज्ञान (कैवल्य) प्राप्त हुआ

72 वर्ष की आयु में 486 ईसा पूर्व राजगृह के समीप उन्होंने शरीर त्याग दिया



बौद्ध धर्म की भांति जैन धर्म ने दुखों से छुटकारा पाने के लिए कुछ नियम बताएं

1- अहिंसा 

2 - चोरी ना करना 

3 - झूठ ना बोलना 

4 - किसी प्रकार की संपत्ति ना रखना 

5 - ब्रह्मचर्य का पालन करना आदि


जैन धर्म के त्रिरत्न है 

1- सम्यक दर्शन 

2- सम्यक ज्ञान 

3- तथा सम्यक आचरण


जैन धर्म का विकास

महावीर के परलोकगमन के पश्चात जैन धर्म में काफी उन्नति की 

राज परिवारों में इस धर्म को काफी सम्मान मिला 

शिशुनाग नंद वंश के शासकों तथा चंद्रगुप्त मौर्य ने इस धर्म को ग्रहण किया

महावीर के 11 शिष्य थे जिन्हें गंधर्व कहा जाता था 

सुधर्मा महावीर की मृत्यु के बाद भी जीवित रहा तथा जैन धर्म का मुख्य उपदेशक बना

जैनियों ने लोकप्रिय भाषा प्राकृत को अपनाया जिससे उसके प्रचार-प्रसार में सहायता मिली

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