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B.A. FIRST YEAR ( HISTORY ) IGNOU- BHIC 131 भारत का इतिहास (प्रारंभ से 300 ई. तक)- Chapter- 10th जनपद एव महाजनपद


वैदिक युग तथा छठी सदी ईसा पूर्व

जनपद वैदिक भारत के प्रमुख राज्य थे आर्य अपने आप को ‘जन’ कहते थे ‘जनपद’ 

जिसमे जन का मतलब ‘लोग’ और पद का मतलब ‘चरण’ था 

इन क्षेत्रों में गांव, कस्बे, शहर हुआ करते थे उत्तर प्रदेश और बिहार के भागों में लोहे के 

विकास के साथ, जनपद ओर ज़्यादा ताकतवर हो गए और महाजनपद में तब्दील हो गए 

इसी समय दार्शनिक विचारों का उदय हुआ बौद्ध, जैन आदि कई संप्रदाय अस्तित्व में 

आए जिन्होंने समाज के स्वरूप में क्रांति का बीजारोपण किया


बस्तियों के प्रकार : जनपद

लोहे के प्रयोग से जंगलों की सफाई करना आसान हो गया था 

गंगा घाटी धान की फसल के लिए उपयुक्त थी यह की खेतिहारी बस्तियां जनपद कही जाती थी 

धीरे- धीरे जनसंख्या में वृद्धि हुई, कृषि के विस्तार, 

युद्ध की प्रक्रिया में वैदिक जनजातियां एक दूसरे तथा 

अन्य जनसंख्या के संपर्क में आई इस कारण क्षेत्रीय इकाइयों का गठन भी शुरू हो गया

कुछ जनपद छठी सदी ईसा पूर्व तक आते-आते महाजनपदों का रूप धारण करने लगे

गहपति एक संपूर्ण परिवार का मालिक का मुखिया होता था एक गहपति के 

पास इतनी जमीन होती थी कि उस जमीन की जुताई के लिए 500 हलो की आवश्यकता होती थी

बौद्ध ग्रंथों में व्यापारियों के लिए सेठी शब्द का प्रयोग किया

राजा, पिता तुल्य समझा जाता था उसके पास करके उगाई के लिए कोई सेना नहीं थी


महाजनपद

बौद्ध ग्रंथ से 16 महाजनपदों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है


काशी

काशी सबसे शक्तिशाली महाजनपद दिखाई देता है यह आज का वाराणसी का केंद्र था  यहा सूती कपड़ों तथा घोड़ों के बाजार के लिए प्रसिद्ध था यही बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया


कोशल

इसका उदय छोटी छोटी इकाइयों और वंशो के सामंजस्य से हुआ इसकी राजधानी श्रावस्ती थी


अंग 

इसमें बिहार के मुंगेर और भागलपुर जिले शामिल है चंपा इसकी राजधानी थी यहां से उत्तरी काली पोलीस वाले मृदभांड मिले


मगध 

यह पटना और गया के क्षेत्रों में अवस्थित था 

राजगृह इसकी राजधानी थी जिसकी किलेबंदी की गई थी 

मगध ने सभी प्रमुख महाजनपदों पर अधिकार कर लिया 

बिंबिसार अजातशत्रु इसके प्रसिद्ध राजा थे


कुरु

यह दिल्ली और मेरठ के आसपास के क्षेत्रों पर विस्तृत था 

यह महाभारत की कथा से संबंधित था


पांचाल

यदि महाभारत से संबंधित था यह आज के बुंदेलखंड पर स्थित है


मत्स्य

यह आधुनिक भरतपुर, जयपुर व अलवर क्षेत्र में स्थित था 

मगध ने इसे अपने साम्राज्य में मिला लिया


गांधार

यह काबुल और रावलपिंडी के मध्य का क्षेत्र था 

इसकी राजधानी तक्षशिला थी


अवंती 

यह मध्य प्रदेश के उज्जैन से नर्मदा तक फैला हुआ था


वत्स

इसकी राजधानी कौशांबी थी यह इलाहाबाद के आसपास के क्षेत्र पर था


अस्मक

आधुनिक पैठान के निकट इसका विस्तार था जो कि तट पर फैला था


वज्जि

आज का वैशाली जिला इसका क्षेत्र था यह आठ कबीलो संगठन था

1- मल्ल 

2- चेदि  

3- सूरसेन 

4- कंबोज

नगरों और कस्बों के प्रकार

साहित्य में शहरों के प्रतीक पुर, दुर्ग, निगम, नगर इत्यादि शब्दों का प्रयोग हुआ

पुर 

इसका मतलब किलेबंद बस्ती थी जिसमें लोगों का निवास 

तथा पशुओं के बाड़े का स्थल होता था 

बाद में इस शब्द का प्रयोग राजा के निवास स्थल के लिए होने लगा


दुर्ग 

इसका प्रयोग राजा की घेरेबंद राजधानी के लिए होता था 

यह आसपास के ग्रामीण इलाकों से अलग होता था


निगम 

यहां व्यापारी वर्ग द्वारा चीजों की बिक्री एवं खरीदारी की जाती थी


नगर

नगर  पुर के राजनैतिक कार्यकलाप तथा निगम के व्यापारिक 

कार्यकलाप सबके मिश्रित रूप होते थे 

राजगृह, चंपा, काशी, श्रावस्ती, कौशांबी इसके उदाहरण है


नगरों की छवि

रामायण में वर्णित अयोध्या और बौद्ध ग्रंथों में वर्णित वैशाली 

बिल्कुल ही आदर्श नगर थे 

नगरों का विकास नदी तटों के लंबे किनारे तथा लंबे व्यापारिक 

मार्गों के संगम स्थल पर हुआ 


विनिमय की वस्तुएं

उपभोग वस्तुओं की बिक्री बड़े स्तर पर होती थी 

विभिन्न धातुओं के उपकरण, गांधार के ऊनी कपड़े तथा घोड़ों की बिक्री होती थी 

विभिन्न प्रकार के व्यापारी होते थे चांदी के सिक्के का अधिकतम मूल्य था 

शंख,आभूषण, चूड़िया, कांघिया ,हाथी दांत से निर्मित आभूषण, कीमती पत्थर 

इत्यादि वस्तुओं की मांग थी


स्त्रियों की दशा

संपत्ति पर पुत्र का अधिकार होता था दास की तरह रहने 

वाली स्त्रियों को आदर्श पत्नी कहा गया है 

यह बात मुख्य रूप से धनी लोगों की पत्नियों पर लागू होती थी


अर्थव्यवस्था

लोहे के प्रयोग ने जंगलों को साफ कराने में सहायता की यहां धान गेहूं जो तथा 

बाजरे की खेती होती थी

रोपाई के कारण उत्पादन में वृद्धि हुई 

अर्थव्यवस्था की कमी को पूरा करने के लिए पशुपालन तथा 

शिकार किया जाता था

व्यापार में मलमल सिल्क, हथियार, सुगंधित द्रव्य, 

हाथी दांत, जेवरात ऐसी अनेक वस्तुएं थी 

जिनका व्यापार होता था 

व्यापार के लिए सिक्कों का प्रचलन हो चुका था


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