Education in Plural Society Important Questions BA Programme nep Semester-3 in Hindi
0Team Eklavyaमई 17, 2025
वंचित पृष्ठभूमि वाले छात्रों में शिक्षा की समस्याएँ बताइए ?
अपवर्जित पृष्ठभूमि वाले छात्रों में शिक्षा की समस्याएँ बताइए ?
अपवर्जित पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों की शिक्षा की पहुंच और उनके द्वारा प्राप्त शिक्षा की गुणवत्ता पर आलोचनात्मक टिप्पणी करें।
विविधता और बहुलवाद से आप क्या समझते हैं? अपवर्जित समूहों से आने वाले विद्यार्थियों की शिक्षा में एक शिक्षक को किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
अपवर्जित पृष्ठभूमि के छात्र –
अनुसूचित जाति (SC),
अनुसूचित जनजाति (ST)
अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)
धार्मिक अल्पसंख्यक
आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग
अपवर्जित पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए शिक्षा की पहुंच और गुणवत्ता पर टिप्पणी
शिक्षा एक मौलिक अधिकार और सामाजिक व आर्थिक उत्थान का एक प्रमुख साधन है।
हालांकि, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), धार्मिक अल्पसंख्यक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग जैसे अपवर्जित पृष्ठभूमि वाले समुदायों से आने वाले छात्रों को शिक्षा प्राप्त करने और उसकी गुणवत्ता में कई प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
अपवर्जित पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए शिक्षा की पहुंच में प्रमुख बाधा -
आर्थिक बाधाएं –
सामाजिक बाधाएं –
भौगोलिक बाधाएं –
सांस्कृतिक और भाषाई बाधाएं –
1. आर्थिक बाधाएं –
गरीबी - अपवर्जित पृष्ठभूमि के छात्रों के परिवार अक्सर अपनी मूलभूत जरूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष करते हैं। स्कूल की फीस, वर्दी, किताबें और परिवहन जैसी लागतें शिक्षा के रास्ते में बड़ी बाधा बनती हैं।
बाल मजदूरी- कई बच्चे परिवार की आय में मदद करने के लिए काम करने को मजबूर होते हैं, जिससे स्कूल जाना उनके लिए संभव नहीं हो पाता।
2 . सामजिक बाधाएं –
भेदभाव और बहिष्करण: अपवर्जित पृष्ठभूमि के छात्र स्कूलों में सहपाठियों, शिक्षकों और समाज के भेदभाव का सामना करते हैं। जिस कारन वे स्कूल छोड़ देते हैं।
लिंग असमानता: अपवर्जित पृष्ठभूमि की लड़कियों को अतिरिक्त बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि जल्दी शादी, घरेलू जिम्मेदारियां और परिवार का शिक्षा के प्रति समर्थन न होना।
३. भौगोलिक बाधाएं –
दूरदराज के इलाकों में स्कूलों की कमी:- ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में स्कूल अक्सर घर से बहुत दूर होते हैं, जिससे बच्चों, खासकर लड़कियों के लिए नियमित रूप से स्कूल जाना मुश्किल हो जाता है।
शहरी झुग्गियां और अस्थायी बस्तियां: शहरी इलाकों में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को स्कूलों में भीड़भाड़ और सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ता है।
4. सांस्कृतिक और भाषाई बाधाएं –
भाषा की समस्या - अपवर्जित पृष्ठभूमि समुदाय अक्सर अपनी क्षेत्रीय या जनजातीय भाषा बोलते हैं, जबकि स्कूलों में मुख्य रूप से हिंदी या अंग्रेजी में पढ़ाया जाता है, जिससे बच्चों को पढ़ाई समझने में कठिनाई होती है।
सांस्कृतिक असंवेदनशीलता: स्कूल का पाठ्यक्रम इनकी सांस्कृतिक धरोहर और अनुभवों को अक्सर नज़रअंदाज करता है, जिससे शिक्षा उन्हें असंबद्ध लगती है।
अपवर्जित पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए शिक्षा की गुणवत्ता
खराब बुनियादी ढांचा अपर्याप्त सुविधाएं:- स्कूलों में अक्सर कक्षा-कक्ष, शौचालय (खासतौर पर लड़कियों के लिए), स्वच्छ पानी और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी होती है।
भीड़भाड़ वाले स्कूल:- उच्च छात्र-शिक्षक अनुपात के कारण शिक्षकों के लिए छात्रों की व्यक्तिगत जरूरतों पर ध्यान देना कठिन हो जाता है।
शिक्षकों की कमी , अपर्याप्त या अनुपस्थित शिक्षक:
इन स्कूलों में प्रशिक्षित और प्रेरित शिक्षकों की कमी होती है।
ग्रामीण इलाकों में शिक्षक अनुपस्थित रहना भी एक बड़ी समस्या है।
शिक्षकों का पक्षपात:
शिक्षक अक्सर अपवर्जित पृष्ठभूमि के छात्रों के प्रति भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण रखते हैं, जिससे छात्रों का आत्मविश्वास और सहभागिता कम हो जाती है।
अप्रासंगिक पाठ्यक्रम ( समाज के अनुकूल नहीं )
पाठ्यक्रम अक्सर इन समुदायों की अनूठी सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक वास्तविकताओं को नजरअंदाज करता है।
व्यावसायिक प्रशिक्षण का अभाव: इन छात्रों को कौशल आधारित शिक्षा नहीं मिलती, जो उनकी रोजगार क्षमता में सुधार कर सके।
उच्च ड्रॉपआउट दर ( सामाजिक और आर्थिक दबाव)
आर्थिक दबाव, पारिवारिक जिम्मेदारियों और शिक्षा की कम प्रासंगिकता के कारण कई छात्र स्कूल छोड़ देते हैं।
समर्थन तंत्र की कमी: -
स्कूल संघर्षरत छात्रों को सलाह देने, प्रेरित करने या उनके लिए विशेष कार्यक्रम चलाने में असमर्थ रहते हैं।
सरकारी नीतियां और प्रयास
अपवर्जित पृष्ठभूमि के छात्रों की समस्याओं को हल करने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं:
1) शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE), 2009
6-14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार देता है।
निजी स्कूलों में 25% सीटें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बच्चों के लिए आरक्षित हैं।
मिड-डे मील योजना -
सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में बच्चों को मुफ्त भोजन प्रदान करती है।
स्कूल उपस्थिति बढ़ाने और बच्चों की पोषण स्थिति सुधारने में मदद करती है।
छात्रवृत्ति और वित्तीय सहायता -
एससी/एसटी/ओबीसी और अल्पसंख्यक छात्रों के लिए विभिन्न छात्रवृत्तियां उपलब्ध हैं, जो उनके परिवारों की आर्थिक बोझ कम करती हैं।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना
विशेष रूप से हाशिये पर मौजूद समुदायों की लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देती है।
एससी/एसटी और अल्पसंख्यकों पर ध्यान
अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए विशेष योजनाएं और मदरसे जैसे संस्थानों को मुख्यधारा की शिक्षा में शामिल करने के प्रयास किए गए हैं।
सरकार के प्रयासों के बावजूद मौजूद चुनौतियां
नीतियों के कार्यान्वयन में समस्याएं अपवर्जित पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए आवंटित धनराशि का दुरुपयोग होता है।
सामाजिक जागरूकता की कमी कई परिवार शिक्षा के महत्व और सरकारी योजनाओं के लाभ से अनजान हैं।
माता-पिता की शिक्षा की कमी के कारण बच्चों को स्कूल भेजने की प्रेरणा नहीं मिलती।
सामजिक गतिशीलता को बढ़ावा देने में शिक्षा की भूमिका बताइए ?
"शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का एक एजेंट है" । सामाजिक गतिशीलता के संबंध में इस कथन की चर्चा कीजिए ?
सामाजिक गतिशीलता की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। सामाजिक गतिशीलता में शिक्षा किस प्रकार योगदान करती है?
सामजिक गतिशीलता का अर्थ
गतिशीलता का अर्थ है "परिवर्तन“
सामाजिक गतिशीलता के संदर्भ में, यह एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में बदलाव को दर्शाता है।
परिवर्तन के प्रकार -
सामाजिक और सामाजिक-आर्थिक होते हैं।
सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों से जुड़े होते हैं।
शिक्षा, व्यवसाय और आय स्तरों से संबंधित होते हैं।
सामजिक गतिशीलता के अध्ययन का महत्व -
सामाजिक गतिशीलता का अध्ययन सामाजिक स्तरीकरण (विभाजन) को समझने का आधार प्रदान करता है।
सामजिक गतिशीलता की परिभाषा -
1. पितिरिम सोरोकिन के अनुसार -
सामाजिक गतिशीलता का अर्थ है व्यक्ति या सामाजिक वस्तु का एक सामाजिक स्थिति से दूसरी स्थिति में स्थानांतरण।
2. मैक्स वेबर के अनुसार –
सामाजिक गतिशीलता वर्ग, प्रतिष्ठा और शक्ति पर आधारित होती है। सामाजिक रूप से आगे बढ़ने की क्षमता व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, सामाजिक सम्मान और संसाधनों या संस्थानों पर नियंत्रण पर निर्भर करती है।
3. एंथनी गिडेंस के अनुसार-
सामाजिक गतिशीलता वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति या समूह एक स्तरीकृत सामाजिक व्यवस्था में स्थान बदलते हैं।
यह शिक्षा और आर्थिक प्रणालियों जैसे संस्थागत और संरचनात्मक कारकों से प्रभावित होती है।
सामजिक गतिशीलता के प्रकार -
सोरोकिन के अनुसार सामाजिक गतिशीलता दो प्रकार की होती है
क्षैतिज गतिशीलता (Horizontal Mobility)
ऊर्ध्व गतिशीलता (Vertical Mobility)
1. क्षैतिज गतिशीलता (Horizontal Mobility)
यह ऐसा परिवर्तन है जिससे व्यक्ति या समूह की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आता है
उदाहरण –
एक व्यापारी अपना व्यापार बदलकर दूसरा समान व्यापार करता है।
- एक देश से दूसरे देश में जाकर वही काम करना।
2. ऊर्ध्व गतिशीलता (Vertical Mobility)
जब व्यक्ति या समूह की स्थिति ऊपर (उन्नति) या नीचे (अवनति) जाती है।
उदाहरण - एक जूनियर इंजीनियर का सीनियर इंजीनियर बनना।
पदोन्नति या पदावनति से स्थिति बदलना।
अमीर से गरीब होना या गरीब से अमीर होना
ऊर्ध्व गतिशीलता (Vertical Mobility)
आरोही Upward
अवरोही Downward
लिपसेट और बेंडिक्स के अनुसार सामाजिक गतिशीलता के प्रकार
अंत : पीढ़ी गतिशीलता (Inter-Generational Mobility)
यह दो या अधिक पीढ़ियों के बीच की गतिशीलता को दर्शाती है।
इसे माता-पिता और बच्चों की सामाजिक स्थिति की तुलना से मापा जाता है।
उदाहरण:- यदि पुत्र अपने पिता से उच्च स्थिति प्राप्त करता है, तो यह उच्च गतिशीलता कहलाती है।
यदि पुत्र अपने पिता से निम्न स्थिति में हो, तो यह पतनोन्मुखी गतिशीलता कहलाती है।
2 . अंतरा पीढ़ी गतिशीलता
यह एक ही पीढ़ी के भीतर व्यक्ति की स्थिति में बदलाव को दर्शाती है।
इसमें व्यक्ति के जीवनकाल में उसकी सामाजिक या आर्थिक स्थिति बदलती है।
उदाहरण:-
एक व्यक्ति जिसने शुरुआत में एक छोटा काम किया, फिर शिक्षा प्राप्त की, और बाद में शिक्षक बन गया।
सामजिक गतिशीलता में शिक्षा की भूमिका -
शिक्षा को सामाजिक गतिशीलता के निर्धारण में एक महत्वपूर्ण कारक माना जाता है।
जिन समाजों में शिक्षा का स्तर अधिक होता है, वहां की आकांक्षाएं भी ऊंची होती हैं।
शिक्षा व्यक्ति की कार्यक्षमता, कौशल, गुण और योग्यता को बढ़ाती है, जिससे वे समाज में बेहतर स्थान प्राप्त कर पाते हैं और योगदान दे पाते हैं।
शिक्षा व्यक्ति को निम्न स्तर से उच्च सामाजिक और आर्थिक स्थिति तक पहुंचने में मदद करती है।
जो समाज विकास करना चाहते हैं, वे हमेशा शिक्षा को प्राथमिकता देते हैं।
अवसर व्यक्ति और समुदाय को सामाजिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़ने में मदद करते हैं।
जहां समान अवसर नहीं होते, वहां विकास भी रुक जाता है।
अनुच्छेद 21(A) के तहत 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया है।
यह सुनिश्चित करता है कि सभी को कम से कम प्राथमिक शिक्षा प्राप्त हो।
संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद, सभी के लिए शिक्षा समान रूप से उपलब्ध नहीं है।
शैक्षणिक संस्थानों की गुणवत्ता समाज की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है बेहतर संस्थान बेहतर समाज बनाते हैं।
यदि बच्चे को अच्छी शिक्षा तथा शिक्षा के अवसर मिलेंगे तो ऐसे में वह आसानी से उच्च सामाजिक गतिशीलता को प्राप्त कर पायेगा
मातृभाषा और मानक भाषा ?
'हिंदी मीडियम' फिल्म से उदाहरण लेकर भारतीय संदर्भ में शिक्षा के माध्यम के रुप में मातृभाषा और मानक भाषा से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करें।
बच्चे के घर भाषा को विद्यालयों में एक कमी के रूप में देखा जाता है। इस संकल्पना को समझाएं। बच्चों की पढ़ाई पर इस के आशयो पर चर्चा करे।
मातृभाषा
वह भाषा है जो बच्चा अपने घर में अपने माता पिता , परिवार से सीखता है
मानक भाषा ?
वह भाषा है जो जिसका प्रयोग विद्यालय में शिक्षा देने के लिए किया जाता है इसे स्कूली भाषा भी कहते हैं
भारतीय सन्दर्भ में मातृभाषा
मातृभाषा ऐसी भाषा है जिसे बच्चा जन्म के बाद से ही जानने और सीखने लगता है। इसकी शुरुआत परिवार से होती है इसलिए इसे मातृभाषा या घरेलू भाषा भी कहा जाता है।
शिक्षण के माध्यम के रूप में मातृभाषा
1953 में यूनेस्को ने बच्चों के लिए प्राथमिक स्तर पर शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा की वकालत की है। ऐसा माना जाता है कि जब बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जाता है तो वे बेहतर ढंग से सीखते और समझते हैं, जिसका उनकी शैक्षणिक उपलब्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
यूनेस्को हर साल 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मना रहा है। NCF 2005 भी प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा के निर्देश की वकालत करती है
भारत में मातृभाषा शिक्षण
भारत की भाषाई विविधता
भारत में भाषाई विविधता शिक्षा के माध्यम को जटिल बनाती है।
स्कूलों में शिक्षा के माध्यम को लेकर लंबे समय से बहस चलती रही है
ब्रिटिश शासन - शिक्षा में अंग्रेजी के बजाय स्थानीय भाषा के उपयोग पर बहस।
स्वतंत्रता के बाद - मातृभाषा, हिंदी, और अंग्रेजी के उपयोग पर चर्चा।
शिक्षा के माध्यम की बहस –
मातृभाषा बनाम मानक भाषा - घर की भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने की वकालत।
अंग्रेजी बनाम हिंदी - वैश्विक और राष्ट्रीय पहचान।
अल्पसंख्यक भाषाएँ - भाषाई अल्पसंख्यकों और आदिवासी भाषाओं के संरक्षण की आवश्यकता।
भाषाई चुनौतियाँ और समाधान
अनुच्छेद 343
हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया।
अंग्रेजी को 15 वर्षों तक आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रखने का प्रावधान।
अनुच्छेद 351
हिंदी के विकास और बढ़ावा देने का निर्देश।
केंद्र सरकार हिंदी को राष्ट्र की संपर्क भाषा बनाने का प्रयास करती है।
संवैधानिक प्रावधान
दक्षिण भारत में विरोध
तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में हिंदी के आधिकारिक भाषा बनने का विरोध।
अंग्रेजी को सहयोगी आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त है।
अल्पसंख्यक भाषाएँ –
कई आदिवासी और अल्पसंख्यक भाषाओं को संविधान में मान्यता देने की माँग।
अल्पसंख्यक भाषाएँ -
कई आदिवासी और अल्पसंख्यक भाषाओं को संविधान में मान्यता देने की माँग।
अंग्रेजी का महत्व -
वैश्विक अवसर प्रदान करने के लिए अंग्रेजी को प्राथमिकता दी जाती है।
त्रि-भाषा सूत्र
भारत के बहुभाषी वातावरण को ध्यान में रखते हुए, त्रि-भाषा सूत्र 1968 में लागू किया गया।
यह एक रणनीति है, न कि भाषा नीति।
उद्देश्य - छात्रों को स्कूली शिक्षा के दौरान तीन भाषाएँ सिखाना।
मुख्य उद्देश्य -
समूह की पहचान का समायोजन।
राष्ट्रीय एकता और एकीकरण को बढ़ावा देना।
प्रशासनिक दक्षता में सुधार।
इतिहास और विकास
1961 में बैठक और कोठारी आयोग (1964-66) की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया।
1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने 1968 की नीति के भाषा प्रावधानों को समर्थन दिया।
त्रि-भाषा सूत्र की संरचना
पहली भाषा: - मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा।
दूसरी भाषा –
हिंदी भाषी राज्यों में कोई अन्य आधुनिक भारतीय भाषा या अंग्रेजी।
गैर-हिंदीभाषी राज्यों में हिंदी या अंग्रेजी।
तीसरी भाषा - हिंदीभाषी राज्यों में अंग्रेजी या कोई आधुनिक भारतीय भाषा (जो दूसरी भाषा न हो)।
गैर-हिंदीभाषी राज्यों में अंग्रेजी या कोई आधुनिक भारतीय भाषा (जो दूसरी भाषा न हो)।
महत्व –
यह सूत्र भारत की भाषाई विविधता का सम्मान करता है।
भाषाई और सांस्कृतिक एकता को बनाए रखने में मदद करता है।
निष्कर्ष –
त्रि-भाषा सूत्र भारत की जटिल भाषाई स्थिति को संतुलित करने और शिक्षार्थियों को भाषाई विविधता का अनुभव प्रदान करने के लिए एक प्रभावी रणनीति है।
मानक भाषा ?
मानक भाषा ?
मानक भाषा और स्कूली भाषा:
मानक भाषा वह है जो स्कूलों में शैक्षिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाती है और पढ़ाई जाती है।
इसे "स्कूली भाषा" भी कहा जाता है।
मातृभाषा और स्कूली भाषा का अंतर
भारत में ज्यादातर बच्चों की घरेलू भाषा और स्कूल में पढ़ाई जाने वाली मानक भाषा अलग होती है।
इस अंतर के कारण बच्चों को स्कूल में सीखने में कठिनाई होती है।
समस्याएँ:
जब बच्चे की घरेलू भाषा को स्कूल में मान्यता नहीं मिलती और मानक भाषा पर जोर दिया जाता है, तो यह बच्चे के लिए सीखने की प्रक्रिया को कठिन बना देता है।
यह रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है और वंचित वर्गों के बच्चों के स्कूल छोड़ने का मुख्य कारण बन सकता है।
मातृभाषा में शिक्षा की आवश्यकता:
प्रारंभिक शिक्षा के लिए बच्चों की मातृभाषा में पढ़ाना अनिवार्य होना चाहिए।
मातृभाषा में शिक्षा से बच्चे बेहतर सीखते हैं और उनकी समझने की क्षमता में वृद्धि होती है।
यह बच्चों को उनकी भाषाई पहचान बनाए रखते हुए स्कूली भाषा में आसानी से समायोजित होने में मदद करता है।
लैंगिक समानता Gender Equality
लैंगिक समानता की अवधारणा की व्याख्या करें। भारत में लैंगिक असमानता को दूर करने में शिक्षा क्या भूमिका निभा सकती है?
लैंगिक समानता का अर्थ है महिलाओं और पुरुषों को उनके लिंग के आधार पर भेदभाव किए बिना समान अधिकार, अवसर और व्यवहार देना।
यह शिक्षा, नौकरी, स्वास्थ्य सेवाओं और निर्णय लेने में समानता सुनिश्चित करता है। इसका उद्देश्य भेदभाव को समाप्त करना और समाज में सभी को समान भागीदारी का अधिकार देना है।
शिक्षा लैंगिक असमानता को कैसे दूर करती है?
जागरूकता और सशक्तिकरण:
शिक्षा समानता का महत्व सिखाती है।
यह महिलाओं और पुरुषों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करती है।
परंपरागत सोच और गलत परंपराओं को तोड़ने में मदद करती है।
लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ना:
शिक्षा दिखाती है कि घर का काम सिर्फ महिलाओं का नहीं, बल्कि सभी का है।
यह समान सम्मान और अवसर प्रदान करने को बढ़ावा देती है।
आर्थिक स्वतंत्रता:
शिक्षित महिलाएं नौकरी करके पैसे कमा सकती हैं।
इससे वे दूसरों पर निर्भर नहीं रहतीं और निर्णय लेने में सक्षम बनती हैं
स्वास्थ्य लाभ:
शिक्षा महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदतें सिखाती है।
कुपोषण, खराब स्वास्थ्य और असुरक्षित गर्भधारण की समस्याओं को कम करती है
बाल विवाह को कम करना:
शिक्षित परिवार अपनी बेटियों की जल्दी शादी करने से बचते हैं।
वे शिक्षा और करियर पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
राजनीतिक भागीदारी:
शिक्षा महिलाओं को राजनीति में भाग लेने में मदद करती है।
वे मतदान कर सकती हैं और समानता के लिए चुनाव लड़ सकती हैं।
भारत में चुनौतियाँ
पहुंच की कमीः ग्रामीण क्षेत्रों में कई लड़कियों को स्कूल जाने का मौका नहीं मिलता।
पितृसत्तात्मक समाजः समाज अब भी महिलाओं को पारंपरिक भूमिकाओं तक सीमित रखना चाहता है।
आर्थिक समस्याः गरीब परिवार अक्सर लड़कों को पढ़ाना प्राथमिकता देते हैं।
सुरक्षा चिंताः छेड़छाड़ का डर कई परिवारों को लड़कियों को स्कूल भेजने से रोकता है।
समाधान –
लड़कियों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना।
लैंगिक समानता के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाना।
लड़कियों के लिए सुरक्षित और सुलभ स्कूल बनाना।
महिलाओं के रोल मॉडल को बढ़ावा देना, ताकि बदलाव को प्रेरित किया जा सके।
बहुभाषिकता
बहुभाषावाद
भारत में बहुभाषावाद के संबंध में भाषा नीति की भूमिका की व्याख्या
बहुभाषिकता का अर्थ -
व्यक्ति एक ही समय में दो या दो से अधिक भाषाओं का ज्ञान रखता हो उसे बहुभाषिकता कहा जाता है
भारत में के संदर्भ में बहुभाषिकता नीति की भूमिका
भारत एक भाषाई रूप से विविधता वाला देश है, जहाँ सैकड़ों भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं। बहुभाषिकता भारतीय समाज की एक महत्वपूर्ण विशेषता है, और भाषा नीतियाँ इस विविधता को प्रबंधित करने में अहम भूमिका निभाती हैं।
विविधता में एकता को बढ़ावा देना
भारत की भाषा नीति का उद्देश्य राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना है, जबकि देश की भाषाई विविधता का सम्मान करना भी सुनिश्चित करना है।
यह नीति इस बात का ध्यान रखती है कि कोई भी भाषा दूसरी भाषा पर हावी न हो, ताकि देश के बहुभाषी स्वरूप को संरक्षित किया जा सके।
भाषाओं के लिए संवैधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान भाषाई विविधता को समायोजित करने के लिए एक ढाँचा प्रदान करता है
राजभाषा:-
अनुच्छेद 343 के तहत, हिंदी को देवनागरी लिपि में संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी गई है, साथ ही अंग्रेज़ी के उपयोग को भी जारी रखने का प्रावधान है।
आठवीं अनुसूची:
संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है, जिन्हें आधिकारिक मान्यता और विकास के लिए समर्थन प्राप्त है।
क्षेत्रीय भाषाओं का संरक्षण:
अनुच्छेद 29 और 30 भाषाई अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की रक्षा करते हैं, ताकि क्षेत्रीय भाषाओं को संरक्षित किया जा सके।
शिक्षा और बहुभाषिकता -
भारतीय शिक्षा नीति में त्रिभाषा सूत्र बहुभाषिकता को बढ़ावा देने का एक प्रमुख साधन है:
छात्रों को उनकी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा के साथ हिंदी और अंग्रेज़ी पढ़ाई जाती है।
यह नीति सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा देने के साथ-साथ राष्ट्रीय और वैश्विक संचार में सुविधा प्रदान करती है।
क्षेत्रीय और जनजातीय भाषाओं को बढ़ावा देना
भाषा नीति क्षेत्रीय और जनजातीय भाषाओं के विकास को प्रोत्साहित करती है
इन भाषाओं को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाता है।
सरकार इन भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए सहायता प्रदान करती है।
सांस्कृतिक महत्व के कारण जनजातीय भाषाओं और बोलियों को मान्यता दी जाती है।
भाषाई संघर्षों का समाधान -
भारत की भाषा नीति संघीय व्यवस्था के माध्यम से भाषाई संघर्षों को सुलझाने का प्रयास करती है
राज्यों को उनकी क्षेत्रीय आवश्यकताओं के आधार पर अपनी आधिकारिक भाषा अपनाने की स्वतंत्रता दी गई है।
उदाहरण:- तमिलनाडु में केवल तमिल को राजभाषा के रूप में अपनाया गया है, जबकि कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में क्रमशः कन्नड़ और तेलुगु को बढ़ावा दिया जाता है।
यह नीति प्रत्येक राज्य को उसकी विशिष्ट भाषाई पहचान बनाए रखने की अनुमति देती है।
बहुभाषिकता में चुनौतियाँ -
भाषाई वर्चस्व :- हिंदी जैसी भाषाओं के प्रभुत्व का गैर-हिंदी भाषी राज्यों द्वारा विरोध किया जाता है।
जनजातीय और अल्पसंख्यक भाषाओं की अनदेखी।
कम बोली जाने वाली भाषाओं को सिखाने और बढ़ावा देने के लिए संसाधनों की कमी।
विविधता और बहुलवाद
निम्नलिखित में से किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए :
(i) घर की भाषा एक आभाव के रुप में
(ii) विविधता और बहुलवाद
(iii) सामाजिक बहिष्कार
विविधता (Diversity):
विविधता का अर्थ है किसी समाज, क्षेत्र या देश में विभिन्न प्रकार के लोगों, संस्कृतियों, भाषाओं, धर्मों, जातियों, और विचारों का सह-अस्तित्व।
यह समाज को विभिन्न दृष्टिकोणों, अनुभवों और परंपराओं से समृद्ध बनाती है।
भारत में विविधता के प्रमुख तत्व:
सांस्कृतिक विविधता:
भाषाई विविधता:
धार्मिक विविधता:
जातीय विविधता:
आर्थिक विविधता:
लैंगिक विविधता:
बहुलवाद (Pluralism):
बहुलवाद का अर्थ है एक समाज या देश में विभिन्न समूहों, संस्कृतियों और विचारों का सम्मानपूर्वक सह-अस्तित्व और सहभागिता।
यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जो समाज में विभिन्नताओं को स्वीकार करता है और उन्हें एक साथ जोड़कर सह-अस्तित्व को बढ़ावा देता है।
बहुलवाद के प्रमुख पहलू:
समानता और सम्मान: सभी समूहों को समान अधिकार और सम्मान प्रदान करना।
सह-अस्तित्व: विभिन्न धर्म, जाति और संस्कृतियों का एक साथ रहना।
सहभागिता: सभी समुदायों और समूहों का समाज के विकास और निर्णय प्रक्रिया में योगदान।
संवाद: विभिन्न विचारों और परंपराओं के बीच संवाद और समझ बढ़ाना।
बहुलवाद का महत्व:
सामाजिक सामंजस्य और शांति बनाए रखना।
लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देना।
समाज के हर वर्ग को विकास में भागीदार बनाना।
सामाजिक संघर्षों को कम करना और एकता को बढ़ावा देना।
विविधता और बहुलवाद के बीच संबंध:
विविधता समाज में मौजूद विभिन्नताओं को दर्शाती है, जबकि बहुलवाद इन विविधताओं को एक साथ सम्मानपूर्वक जीने की प्रक्रिया को सुनिश्चित करता है।
विविधता तभी सफल हो सकती है, जब बहुलवाद के माध्यम से समाज के सभी वर्गों को समान अवसर और सम्मान दिया जाए।