INTRODUCTION
प्रिय विद्यार्थियों आपके लिए, हमारे द्वारा उपलब्ध कराए गए BA programme ke Notes in hindi यह नोट्स Semester 6th के लिए है ( History part 1 ) sheet yuddh ka Arth tatha utpati ke Karan ) UNIT- 1 Notes in hindi यह नोट्स उन सभी बच्चों के काम आएंगे। जोकि SOL, DU / DU REGULAR NCWEB में पढ़ाई कर रहे हैं।
विश्व का दो हिस्सों में बंटवारा
- शीतयुद्ध का अर्थ
- शीतयुद्ध की उत्पत्ति के कारण
विश्व का दो हिस्सों में बंटवारा
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व दो भागों में बंट गया था पश्चिमी ब्लॉक और पूर्वी ब्लॉक
पश्चिमी ब्लॉक – अमेरिका USA – पूंजीवादी देशों का समूह
पूर्वी ब्लॉक – सोवियत संघ USSR - साम्यवादी देशों का समूह
यह बंटवारा यूरोप महाद्वीप के देश जर्मनी की राजधानी बर्लिन से हुआ
बर्लिन में 1961 में एक दीवार खड़ी की गई जिसे बर्लिन की दीवार कहा जाता है
यह दीवार पूर्वी और पश्चिमी ब्लॉक के बीच विभाजन का प्रतीक थी
[ Cold war / शीत युद्ध ]
पूर्वी और पश्चिमी ब्लॉक के देशों के बीच तनाव , भय , संघर्ष की स्थिति को शीतयुद्ध के नाम से जाना जाता है l
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 45 वर्षों तक अमेरिका और सोवियत संघ के बीच विनाशकारी युद्ध की संभावना बनी रही, लेकिन वास्तव में उनके बीच कोई युद्ध नहीं हुआ
केवल युद्ध की संभावना थी और इसी संभावना के कारण दोनों महाशक्ति द्वारा अधिक से अधिक हथियार इकट्ठे किये गए
अमेरिका और सोवियत संघ के बीच में विचारधारात्मक मतभेद था
अमेरिका का मानना था कि पूंजीवादी व्यवस्था विश्व की सर्वश्रेष्ठ आर्थिक प्रणाली है
जबकि सोवियत संघ का मानना था कि साम्यवादी व्यवस्था, पूंजीवादी व्यवस्था से बेहतर है
World War - II ( 1939 – 45 )
- Allied Forces मित्र राष्ट्र
- USA
- Soviet union
- France
- Britain
Axis Powers धुरी राष्ट्र
- Germany
- Japan
- Italy
शीत युद्ध की उत्पत्ति और इसके प्रमुख कारण
दूसरे विश्व युद्ध के समय ही शीत युद्ध होने की स्थिति बनती नजर आ रही थी
दोनों महाशक्तियां अमेरिका और सोवियत संघ दूसरे विश्व युद्ध में एक साथ थे
लेकिन इनके बीच कुछ मतभेद दिखाई देने लगे थे
बाद में यही मतभेद शीतयुद्ध के रूप में नजर आए
विचारधाराओं की लड़ाई -
अमेरिका और सोवियत संघ के बीच विचारधाराओं के स्तर पर संघर्ष देखने को मिला
अमेरिका पूंजीवादी व्यवस्था का समर्थक था
सोवियत संघ साम्यवादी व्यवस्था को बेहतर मानता था
यह विचारधाराओं की लड़ाई भी शीतयुद्ध का एक कारण थी
ऐतिहासिक कारण -
शीत युद्ध की उत्पत्ति का कारण 1917 की रूसी क्रांति भी मानी जाती है
क्योंकि इस क्रांति के पश्चात रूस में साम्यवाद का उदय हुआ और पश्चिमी देश इस के बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर खुश नहीं थे
पश्चिमी देशों ने साम्यवाद को विश्व में फैलने से रोकने के लिए इसको समाप्त करने का विचार बना लिया तथा हिटलर को रूस पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया गया
क्योंकि पश्चिमी राष्ट्र साम्यवाद का प्रसार को रोकना चाहते थे
सोवियत संघ का तेजी से शक्तिशाली होना -
सोवियत संघ 15 गणराज्यों को मिलाकर बनाया गया था
इसमें सबसे शक्तिशाली रूस था
सोवियत संघ आर्थिक, सामाजिक, सैन्य स्तर पर अमेरिका को बराबर की टक्कर देने लगा था
इसलिए यह शीतयुद्ध का एक कारण बना
सोवियत संघ द्वारा याल्टा समझौते का पालन न करना -
याल्टा समझौता सन 1945 में रूजवेल्ट, चर्चिल और स्टालिन के बीच हुआ था
इसमें इस बात पर सहमती बनी थी की पोलैंड में प्रतिनिधि शासन को मान्यता दी जाएगी
लेकिन युद्ध की समाप्ति के समय स्टालिन ने अपने वादे से मुकरते हुए वहां पर अपनी लुबिनन सरकार को ही सहायता देना शुरू कर दिया
उसने वहां पर अमेरिका और ब्रिटेन के पर्यवेक्षकों को प्रवेश की अनुमति देने से इनकार कर दिया और पोलैंड की जनवादी नेताओं को गिरफ्तार करना आरंभ कर दिया और समझौते के खिलाफ जाकर हंगरी , रोमानिया चेकोस्लोवाकिया पर अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू किया
इस कारण से अमेरिका और सोवियत संघ के बीच तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई
तुर्की में सोवियत संघ का हस्तक्षेप -
दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ ने तुर्की में अपना प्रभाव बढाना शुरू किया
उसने तुर्की पर एक सैनिक अड्डा बनाने के लिए दबाव डाला
अमेरिका और अन्य पश्चिमी राष्ट्र के खिलाफ थे
इसीलिए अमेरिका ने ट्रूमैन सिद्धांत के अनुसार तुर्की को हर संभव सहायता देने का प्रयास किया
ताकि वहां साम्यवादी प्रभाव को कम किया जा सके
द्वितीय मोर्चे से संबंधित विवाद -
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हिटलर के नेतृत्व में जर्मन सेना सोवियत संघ की तरफ बढ़ रही थी
तो सोवियत संघ ने पश्चिमी राष्ट्रों से सहायता की मांग की तो सोवियत संघ ने कहा कि पश्चिमी शक्तियों को जर्मनी का वेग कम करने के लिए सोवियत संघ में दूसरा मोर्चा खोलना चाहिए
ताकि रूसी सेना पर जर्मनी का दबाव कम हो लेकिन पश्चिमी शक्तियों ने जानबूझकर दूसरा मोर्चा खोलने में बहुत देर कि इससे जर्मन सेनाओं को रूस में तबाही मचाने का मौका मिला
और सोवियत संघ के मन में पश्चिमी शक्तियों के विरुद्ध नफरत की भावना पैदा हो गई
जो आगे चलकर शीतयुद्ध के रूप में सामने आई
ईरान में सोवियत सेना का ना हटाया जाना
सोवियत संघ और पश्चिमी शक्तियों ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी के आत्मसमर्पण के बाद 6 महीने के अंदर ही ईरान से अपनी सेना वापस बुलाने का समझौता किया
युद्ध की समाप्ति पर पश्चिमी राष्ट्रों ने ईरान से अपनी सेना हटा ली लेकिन सोवियत संघ ने ऐसा नहीं किया
उसने ईरान पर दबाव बनाकर उसके साथ एक तेल समझौता कर लिया
इससे पश्चिमी राष्ट्रों के मन में द्वेष की भावना पैदा हो गई
बाद में संयुक्त राष्ट्र संघ के दबाव पर ही उसने ईरान से सेनाएं हटाई
सोवियत संघ द्वारा बार-बार वीटो शक्ति का प्रयोग
सोवियत संघ द्वारा अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रत्येक प्रस्ताव को निरस्त करने के लिए बार -बार वीटो का प्रयोग किया गया
वीटो के इस दुरुपयोग के कारण पश्चिमी राष्ट्र सोवियत संघ की आलोचना करने लगे
और उसके खिलाफ हो गए
वर्चस्व की लड़ाई
अमेरिका और सोवियत संघ दूसरे विश्व युद्ध के बाद विश्व में अपने वर्चस्व को बढ़ाने लगे थे
दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा थी और कोई भी इसमें पीछे हटने को तैयार नहीं था
वर्चस्व की इस होड़ के कारण शीत युद्ध का प्रसार हुआ
लैंड लीज समझौते पर रोक
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के बीच जो समझौता हुआ था
उसके तहत सोवियत संघ को अमेरिका द्वारा सहायता मिल रही थी
लेकिन अमेरिका ने बिना किसी पूर्व सूचना के ही सहायता बंद कर दी
इस निर्णय से सोवियत संघ नाराज हो गया इससे दोनों महाशक्तियों में आपसी विश्वास की भावना में कमी आई और शीतयुद्ध का वातावरण तैयार
परमाणु बम का अविष्कार
अमेरिका द्वारा परमाणु बम हासिल किया गया
इसके बारे में ब्रिटेन को जानकारी थी लेकिन अमेरिका में परमाणु बम पर अनुसंधान की जानकारी सोवियत संघ को नहीं दी गई
सोवियत संघ से यह राज छुपा कर रखा गया
इससे सोवियत संघ नाराज हुआ इसे उसने विश्वासघात माना
यह भी शीतयुद्ध का एक कारण बना
शीतयुद्ध का प्रभाव
- अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीतयुद्ध का प्रभाव
- शीतयुद्ध के सामजिक- आर्थिक प्रभाव
1) विश्व का दो गुट में बंट जाना
दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद शीतयुद्ध का दौर शुरू हुआ
इस दौरान विश्व दो गुटों में बंट गया था
एक तरफ पश्चिमी गुट था जो पूंजीवाद का समर्थक था, दूसरी तरफ पूर्वी गुट था जो साम्यवाद का समर्थक था
इन दोनो गुटों के बीच संघर्ष, प्रतिस्पर्धा, और युद्ध की संभावना बनी रहती थी
2) परमाणु युद्ध की संभावना का डर
शीतयुद्ध के परिणामस्वरूप परमाणु हथियार एवम
अन्य हथियार को बढ़ाने की होड़ लग गई
दोनों महाशक्तियां एक - दूसरे से अधिक ताकतवर होना चाहते थे
अमेरिका ने सन 1945 में जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए इससे यह साबित हो चुका था कि अगर तीसरा विश्वयुद्ध होता है तो उसके भयानक परिणाम होंगे
3) शीतयुद्ध ने दुनिया में सैनिक संधियों और सैनिक गठबंधनों को जन्म दिया
शीत युद्ध के दौरान नाटो, सीटो, सेंटो तथा वारसा जैसे सैनिक संगठनों का जन्म हुआ इससे निशस्त्रीकरण के प्रयासों को नुकसान हुआ
और दोनों महाशक्तियों और उनके गठबंधन वाले देशों के बीच तनाव की स्थिति बरकरार रही
4) यूरोप का बंटवारा
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब दोनों महाशक्तियों के बीच में प्रतिस्पर्धा बढ़ी
ऐसे में यूरोप का बंटवारा कर दिया गया यूरोप में जर्मनी को दो हिस्सों में बांट दिया गया
यह दोनों महाशक्तियों के बीच विभाजन का प्रमुख प्रतीक रहा
5) संयुक्त राष्ट्रसंघ का कमजोर होना
शीत युद्ध ने संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका में कमी कर दी
अब अंतरराष्ट्रीय मामलों पर संयुक्त राष्ट्र संघ दोनों महाशक्तियों के फैसलों पर निर्भर हो गया
संयुक्त राष्ट्र संघ चाह कर भी अमेरिका के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा पाता था
संयुक्त राष्ट्र संघ समस्याओं के समाधान का मंच ना होकर मात्र एक दर्शक बनकर रह गया
6) हथियारों की होड़
शीतयुद्ध से हथियारों की होड़ को बढ़ावा मिला जो कि विश्व शांति के लिए एक गंभीर समस्या थी
दोनों महाशक्तियां अपनी सैनिक शक्ति को बढ़ाने में लग गई
इन्होंने आधुनिक हथियारों को बढ़ाया
और विश्व के सामने परमाणु युद्ध का खतरा रख दिया
7) गुटनिरपेक्ष आंदोलन की आवश्यकता
शीतयुद्ध ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन को एक आधार प्रदान किया, क्योंकि जो देश इस समय में औपनिवेशिक चंगुल से आजाद हुए थे उनके सामने फिर से
महाशक्तियों में शामिल होकर अपनी आजादी होने का खतरा मंडरा रहा था
ऐसे में इन देशों को यह आवश्यकता महसूस हुई कि उन्हें दोनों महाशक्तियों के खेमे से अपने आप को दूर रखना चाहिए इसलिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी गई
तथा विभिन्न देश इसमें शामिल हुए
8) नव - उपनिवेशवाद का जन्म
शीत युद्ध के दौरान नव - उपनिवेशवाद का जन्म हुआ
क्योंकि विकसित देश जिन्होंने छोटे देशों को हथियार तथा सुरक्षा का वायदा देकर अपने खेमे में शामिल कर लिया था , अब वह उनके आंतरिक मामलों में प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप करने लगे थे
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि शीत युद्ध के कारण नव - उपनिवेशवाद का जन्म हुआ
9) भय, आतंक, और अविश्वास की भावना में बढ़ोतरी
शीत युद्ध ने विभिन्न राष्ट्रों के बीच भय, आतंक, और अविश्वास की भावना को बढ़ाया
शीत युद्ध के कारण हमेशा यह भय बना रहता था कि कहीं तीसरा विश्वयुद्ध न हो जाए
10) यूरोपीय देशों में शीतयुद्ध का आर्थिक प्रभाव
शीत युद्ध ने पश्चिमी देशों में तेजी से आर्थिक पुनरुत्थान किया
विभिन्न यूरोपीय देश आर्थिक सहयोग की ओर बढ़े
अमेरिका ने भी मार्शल योजना के तहत पश्चिमी यूरोप के देशों की सहायता की
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