पृष्ठभूमि
मौर्य के शासन काल में भारतीय अर्थव्यवस्था के संगठन और स्वरूप में काफी बदलाव आया
अधिकतर लोग कृषि कार्यों में संगलन थे और मुख्य राजस्व कृषि से प्राप्त होता था
इसके अलावा शिल्प वाणिज्य व्यापार आदि भी प्रचलन था
प्रशासन में राजा का पद सर्वोच्च था
प्रशासन कई स्तरों पर था - केंद्रीय क्षेत्र मगध, प्रांतीय केंद्र, परिधि के क्षेत्र, और शहर तथा गांव
केंद्रीय प्रशासन
शासन का केंद्र बिंदु राजा था
अधिकारियों की नियुक्ति
देश की आंतरिक रक्षा और शांति,
युद्ध संचालन, सेना का नियंत्रण आदि सभी राजा के अधीन था
राजा ही राज्य का कानून निर्माता, प्रशासक, सर्वोच्च न्यायाधीश और सेनापति था
प्रांतीय प्रशासन
प्रांतीय गवर्नर या राजा का कोई संबंधी होता था
उदाहरण के लिए अशोक तक्षशिला का गवर्नर था
प्रांतीय गवर्नर की सहायता मंत्रीपरिषद द्वारा होती थी
जनपद तथा ग्रामीण प्रशासन
प्रदेस्ट जनपद स्तर के अधिकारी होते थे
राजूक और युक्त अन्य अधिकारी होते थे राजा इनसे सीधा संपर्क करता था
ग्रामीण स्तर पर स्थानीय लोग होते थे जिन्हें ग्रामीक कहा जाता था
गोप और स्थानिक जनपद गांवों के बीच मध्यस्थता का काम करते थे
कृषि और भू राजस्व
राज्य की आय का मुख्य स्रोत भूमि कर था यह उपज का 1/6 भाग होता था
भूमि कर को भाग कहा जाता था
संकटकालीन अवस्था में कौटिल्य ने राजा प्रणय कर (आपातकालीन कर)
वसूल करने का अधिकार दिया था
- ओभानिक - विशेष अवसरों पर राजा को दी जाने वाली भेंट
- पार्श्व - अधिक लाभ होने पर व्यापारियों से लिया जाता था
- विवित -पशुओं की रक्षा के लिए लिया जाता था
- सेतु - फल फूल पर लिया जाने वाला कर
- रज्जू - भूमि की नाप के समय लिया जाने वाला कर
नागरिक प्रशासन
नागरिक परिषद उपसमितियों में विभाजित थी
प्रत्येक समिति के 5 सदस्य थे
पहली समिति का काम उद्योग और शिल्प की देखरेख का था
जिसमें केंद्रों का निरीक्षण तथा मजदूरी निर्धारित करना आदि सम्मिलित था
दूसरी समिति विदेशियों की देखभाल, भोजन, आवास और सुरक्षा
आदि की व्यवस्था करती थी
तीसरी समिति जन्म और मृत्यु का पंजीकरण करती थी
चौथी समिति वाणिज्य और व्यापार के लिए थी माप तोल का निरीक्षण
और बाजार और मंडी का नियंत्रण इनका कार्य था
पांचवी समिति निर्मित वस्तु का निरीक्षण करती थी तथा उनकी बिक्री का प्रबंध करती थी
छठी समिति का काम बिक्री कर वसूल करना था
जिसकी दर वस्तु के मूल्य की 1/10 थी
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