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B.A. FIRST YEAR, हिंदी सिनेमा का अध्ययन, यूनिट 1, Ch# 1 सिनेमा का सामान्य परिचय एवं उसकी विकास यात्रा NOTES

परिचय

सिनेमा मुख्य रूप से मनोरंजन एवं जनसंचार ,सूचना और शिक्षा का एक माध्यम है 
सिनेमा का उदय 19वीं सदी के अंतिम दशक में फ्रांस में हुआ इसकी शुरुआत दृश्य 
माध्यम के रूप में हुई लेकिन कुछ दशकों के बाद इसके साथ आवाज को भी जोड़ा गया 
इस तरह यह दृश्य श्रव्य माध्यम बन गया
आरंभ में इसके दृश्य श्वेत श्याम रूप में ही पर्दे पर आते थे लेकिन कुछ और 
दशकों के बाद दृश्य रंगीन पर्दे पर आने लगे तकनीकी दृष्टि से सिनेमा में 
अत्यधिक परिवर्तन हुए आज के सिनेमा में और 100 साल पहले के सिनेमा 
में जमीन आसमान का अंतर दिखाई देता है

सिनेमा प्रौद्योगिकी का विकास

सिनेमा एक वैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित है यदि किसी दौड़ते हुए 
घोड़े के क्रम से दिए गए फिर चित्रों को इस गति से आंखों के आगे से 
गुजारा जाए कि 1 मिनट में लगभग 24-25 चित्र निकल सके तो हमें 
ऐसा आभास होगा कि हम घोड़े को दौड़ता हुआ देख रहे हैं इसी सिद्धांत 
पर सिनेमा माध्यम आधारित है
आधुनिक युग से पहले दृश्य संबंधी स्मृतियों को आमतौर पर  चित्र 
के रूप में पुनर्रचित किया जाता था
लेकिन आधुनिक युग में फोटोग्राफी के आविष्कार ने यथार्थ के 
किसी एकक्षण को जैसा वह है उसे उसी रूप में अंकित करना संभव 
कर दिखाया इसके आविष्कार का श्रेय अमेरिकी आविष्कारक 
थॉमस एडिसन को जाता है
लेकिन अहम रोल इसमें इंग्लैंड के एडवर्ड मूइब्रिज ने निभाया उसने घुड़दौड़ के 
मैदान में कई सारे तार बांध दिए और प्रत्येक तार को एक स्थिर कैमरे के शटर से जोड़ दिया
दौड़ता हुआ घोड़ा तारों को गिरा देता था जिससे कई सारे चित्र लगातार कैमरे द्वारा लिए गए
इन स्थित चित्रों को एक डिस्क पर लगाकर उन पर लालटेन की 
रोशनी डालकर दौड़ते हुए घोड़े का बिंब प्रदर्शित किया गया 
उससे प्रेरित होकर फ्रांस के वैज्ञानिक JULES MAREY ने 1882 में एक 
ही कैमरे से बहुत सी चित्रों की शूटिंग करने 
वाले उपकरणों का आविष्कार किया
एडिशन ने तस्वीरों का प्रयोग 1888 में स्कॉटिश वैज्ञानिक 
विलियम कैनेडी डिक्शन के निर्देशन में शुरू किए जब उसने 
वेक्ससिलेंडर पर फोटोग्राफी को रिकॉर्ड करने का प्रयास किया 
1889 में डिक्शन ने इस क्षेत्र में जबरदस्त पहल की उसने जॉर्ज 
ईस्टमैन की सेल्यूलाइड का इस्तेमाल किया
सेल्यूलाइट फिल्म बाद में गतिशील छायांकन का श्रेष्ठ 
माध्यम बन गई क्योंकि इसे रोल करना आसान था और 
मनचाही लंबाई दी जा सकती थी डिक्शन ने एडिशन के कैमरे 
का इस्तेमाल करते हुए 15 सेकंड की कई फिल्मों का अंकन 
किया लेकिन एडिशन इन चित्रों के सार्वजनिक प्रदर्शन के 
लिए इनके प्रक्षेपण की समस्या नहीं सुलझा पाए

इसका हल फ्रांस के अगसतेल्यूमिए और लुइल्यूमिए ब्रदर्स ने निकाला 
उन्होंने आधुनिक पोर्टेबल कैमरे का इस्तेमाल किया जो प्रिंटर और 
प्रोजेक्टर के रूप में भी काम कर सकता था 28 दिसंबर 
1895 को 

लुमियर ब्रदर्स ने पेरिस में एक कैफे के बेसमेंट में दर्शकों से पैसे लेकर 
गतिशील तस्वीरों का संक्षिप्त प्रदर्शन किया फिल्मों के इतिहास की 
शुरुआत इसी तारीख से हुई
19वीं सदी के अंत तक आते-आते दुनिया के कई हिस्सों में 
मूवी कैमरा का प्रयोग होने लगा इनके द्वारा दिखाए जाने 
वाले छायाचित्र 35 मिलीलीटर के होते थे और प्रत्येक 1 सेकंड 
में 16 स्थिर चित्र होते थे जिन्हें फिल्मों की भाषा में फ्रेम कहा 
जाता है आरंभ में सिनेमा में आवाज नहीं थी वह फिल्में ही 
दिखाई जाती थी

आवाज को दृश्यों के साथ संयोजित करना आसान काम नहीं था लेकिन 
लगभग 3 दशकों के बाद फिल्मों में आवाज का भी समावेश 
सफलतापूर्वक कर लिया गया इसके लिए हॉलीवुड स्टूडियो वॉर्नर ब्रदर्स ने 
वीटा फोन प्रणाली का प्रयोग शुरू किया जिसने अलग फोनोग्राफिक 
डिस्क के साथ चित्र का संयोजन किया इस प्रकार चित्रों के साथ ध्वनियां 
संवादों और संगीत का मिश्रण आरंभ हुआ
आरंभ में फिल्म एक शॉट की होती थी लेकिन बाद में कैमरे का 
इस्तेमाल तरह- तरह से किया जाने लगा उसे आगे -पीछे ,ऊपर- नीचे दाएं 
बाएं चलाते हुए फिल्म शूट की जाने लगी एक ही स्थान पर रखते हुए 
कैमरे के लेंस को नजदीक और दूर से फिल्म आना मुमकिन हुआ इस 
तकनीकी बदलाव से विभिन्न स्रोतों को जोड़कर फिल्म को लंबा किया 
जाना मुमकिन हुआ

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सिनेमा की विशिष्टता और प्रकार्य

लुमियए बंधुओं ने पहली बार जिन फिल्मों का सार्वजनिक प्रदर्शन किया वे 1 से 2 
मिनट लंबी थी और प्रत्येक फिल्म एक एक शॉट की थी उनमें से 
एक फिल्म में फैक्ट्री से निकलते हुए मजदूरों को दिखाया
दूसरी में एक छोटा बच्चा बगीचे में पानी देते माली को पाइप पर पांव रखकर 
परेशान करता है 

तथा तीसरी में पैरिस में होने वाले किसी कॉन्फ्रेंस में शामिल 
होने के लिए आए लोगों के आगमन को दर्शाया इनमें पहली फिल्म वृत्तचित्र का
दूसरी फिल्म कथाचित्र का और तीसरी फिल्म समाचार चित्र का मूल रूप है
फ्रांस के जॉर्जमेलिसिन सिनेमा में दूसरे चमत्कार को पेश किया 
उसने एक खिलौना रेलगाड़ी को प्रकृति चित्र की पृष्ठभूमि में चलते हुए 
फिल्माया और यह भ्रम पैदा किया कि जैसे एक वास्तविक रेल 
गाड़ी चल रही है इस तरह जॉर्जमेलिस ने ए ट्रिप टू द मून नामक 
फिल्म में मनुष्य द्वारा चंद्रमा की यात्रा का काल्पनिक दृश्य प्रस्तुत किया 
इसने फेंटेसी को यथार्थ की तरह पेश किया

सिनेमा माध्यम का उपयोग सूचना शिक्षा और मनोरंजन तीनों 
कार्यों के लिए किया जाता है वृत्त चित्रों के निर्माण के पीछे मुख्य रूप 
से सूचना और शिक्षा ही है हम अखबार रेडियो टेलीविजन के माध्यम 
से तत्काल कुछ ना कुछ जानकारी हासिल करते हैं उनके बारे में 
विस्तार से वृत्त चित्र द्वारा जानकारी हासिल की जा सकती है कथाचित्रों की 
शुरुआत बीसवीं सदी के आरंभ में हुई कथात्मक फिल्मों को मनुष्य देखकर 
उसी तरह का आनंद ग्रहण करता है जैसा आनंद उपन्यास पढ़ने से प्राप्त होता है

विश्व सिनेमा की यात्रा

लुमियए बंधुओं ने 1 से 2 मिनट की अत्यंत लघु फिल्मों का निर्माण किया के बाद 
जॉर्जमेलिस जिसका मूल पैसा जादू दिखाना था उसने कुछ ऐसी फिल्मों का निर्माण 
किया जिसमें यथार्थ को फेंटेसी का सम्मिलित प्रयोग किया उसके बाद बीसवीं सदी 
के पहले दशक में अमेरिका ने ऐसी फिल्मों का निर्माण किया जिसे फीचर फिल्मों 
का आरंभ कहा जाता है इनमें एडविंन एस पोर्टर की फिल्म दिल लाइफ ऑफ एन 
अमेरिकन फायरमेन और द ग्रेट ट्रेन रॉबरी का उल्लेख किया जाता है
फिल्म एक रचनात्मक माध्यम भी है इसका प्रमाण अमेरिकी 
फिल्ममेकर डब्लू  ग्रिफिथ ने दिया इन्होंने अपनी फिल्म में कहानी के कहने के 
विभिन्न दृश्यों को ऐसे रचनात्मक रूप में जोड़कर प्रस्तुत किया जो दर्शकों को 
तर्कसंगत और सामंजस्य पूर्ण नजर आए दी बर्थ ऑफ ए नेशन 1915 और 
इनटोलरेंस 1916 इनकी फिल्मे थी 1920 में जर्मन फिल्मकार रॉबर्ट वियने ने दी 
केबिनेट ऑफ डॉ. कालीगिरी फिल्म का निर्माण किया जिसने जर्मन सिनेमा 
की शुरुआत की

आरंभिक 30 साल तक मूक फिल्में बनी 1927 में दी जॉज सिंगर नाम की फिल्म के 
साथ ही सवाक फिल्मों का दौर शुरू हुआ सवाक फिल्मों ने वृत्तचित्र और कथा चित्र 
दोनों के विकास का मार्ग प्रशस्त किया अमेरिका में सिनेमा की प्रौद्योगिकी के 
विकसित होने के साथ-साथ फिल्म कला बहूविध विकास हुआ खास तौर पर चार्ली 
चैपलिन मनोरंजक फिल्में बनाने के लिए प्रसिद्ध थे लेकिन रचनात्मक फिल्मों का 
विकास है यूरोप में अधिक हुआ जिनमें फ्रांस, इटली और सोवियत संघ का विशेष 
स्थान था
यूरोप के अलावा सिनेमा का विकास एशिया दक्षिण अमेरिका 
और अफ्रीका में भी हुआ एशिया में जापान भारत और चीन में 
कई प्रसिद्ध फिल्मकार हुए इनमें जापान के अकीराकुरोसावा 
और भारत के सत्यजीत राय का नाम उल्लेखनीय है

भारत में सिनेमा की विकास यात्रा

भारत में सिनेमा का विकास विश्व सिनेमा के लगभग समानांतर हुआ लुमियर 
बंधुओं ने भारत ने अपनी फिल्मों का प्रदर्शन 7 जुलाई 1896 की शाम को 6:00 
बजे मुंबई के वाटसन होटल में किया जिसको हरिश्चंद्र सखाराम भटवाडेकर ने भी देखा

इससे प्रभावित होकर उन्होंने वह कैमरा मंगाया और मुंबई के ही 
हैंगिंग गार्डन में कुश्ती का आयोजन किया और इस कैमरे से उन्होंने 
अपनी पहली फिल्म बनाई इस फिल्म को धोने के लिए इंग्लैंड भेजा 
गया और बाद में 1899 में अन्य यूरोपीय फिल्मों के साथ स्कोर 
भारत में प्रदर्शित किया गया

भारतीय सिनेमा के पितामह फिल्मकार थे 
ढूंडीराज गोविंद फाल्के जिन्हें लोग दादा साहब फाल्के के नाम से भी जानते हैं 
फाल्के ने 1913 में भारत की पहली फीचर फिल्म का निर्माण किया जिसका नाम 
था राजा हरिश्चंद्र यह फिल्म भारत की पौराणिक कथाओं पर आधारित थी यह 
एक मूक फिल्म थी
भारत में पहली सवाक फिल्म 1931 में बनी जिसका नाम 
आलमआरा था जिसका निर्देशन आर्देशिर ईरानी ने किया था 

यह हिंदुस्तानी भाषा में बनी फिल्म थी 
इसी साल तेलुगु में भक्त पहलाद और 
तमिल में कालिदास फिल्म का निर्माण हुआ

भारत में प्रतिवर्ष लगभग 1000 से अधिक फिल्मों का निर्माण 
होता है जिसमें लगभग 25 से अधिक भाषाओं में फिल्में 
बनती है इनमें सबसे अधिक फिल्में हिंदी, तमिल, तेलुगू 
कन्नड़ और मलयालम में बनती है
जो विश्व में किसी भी देश द्वारा प्रतिवर्ष बनाए जाने वाली 
फिल्मों में सबसे अधिक है
फिल्म निर्माण के लिए कई कंपनियों और स्टूडियो स्थापित किए गए 
जिनमें रंजीत मूवीटोन , न्यू थियेटर्स, प्रभात स्टूडियो, वाडिया मूवीटोन ,बॉम्बे 
टॉकीज, मिनर्वामूवीटोन आदि प्रमुख है
अंग्रेजों ने भारतीय फिल्मों पर नियंत्रण के लिए 1920 में सेंसर बोर्ड की व्यवस्था 
लागू की जो आज भी जारी है
1954 में भारत में सरकार की ओर से राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार की शुरुआत की 
गई यह हर साल श्रेष्ठ भारतीय फिल्मों को दिया जाता है

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